ज़िन्दगी मजबूरियों की दास्तां है,
साथ ख़ुशियों के ग़मों का कारवां है।
है उजाला अब चराग़े-ग़म से घर में,
आंधियों के बेरहम लब बेज़ुबां है।
क्यूं अदालत, क़ातिलों को चाहती है,
न्याय के चुल्हों में पैसों का धुआं है।
झोपड़ी मजबूत है मेरी वफ़ा की,
बेवफ़ाई के महल में छत कहां है।
दर मकाने-इश्क़ का टूटा हुआ है,
नींव के भीतर अहम की आंधियां है।
तुम हवस के आसमां में फ़ंस चुकी हो,
मेरे छत पे सब्र की सौ सीढियां है।
फ़िक्र दुनिया की करें क्यूं,ज़िन्दगी की,
ग़म-ख़ुशी जब तेरे मेरे दरमियां है।
है समन्दर की अदाओं से सुकूं अब,
साहिलों के हुस्न में वो रस कहां है।
राम की नगरी में रहने वालों के घर,
आज क्यूं रावण के पैरों के निशां हैं।
Saturday, 24 July 2010
Monday, 12 July 2010
उलझन
उलझनों में मुब्तिला है ज़िन्दगी ,मुश्किलों का सिलसिला है ज़िन्दगी।
बीच सागर में ख़ुशी पाता हूं मैं , साहिले ग़म से जुदा है ज़िन्दगी ।
फ़ांसी फिर मक़्तूल को दे दी गई ,क़ातिलों का फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी।
किसी को तरसाती है ता-ज़िन्दगी,किसी के खातिर ख़ुदा है ज़िन्दगी।
मैं ग़ुलामी हुस्न की क्यूं ना करूं, चाकरी की इक अदा है ज़िन्दगी ।
इक किनारे पे ख़ुशी दूजे पे ग़म ,दो क़दम का फ़ासला है ज़िन्दगी।
मैं हताशा के भंवर में फंस चुका, मेरी सांसों से ख़फ़ा है ज़िन्दगी।
बे-समय भी फ़ूट जाती है कभी ,पानी का इक बुलबुला है ज़िन्दगी।
वादा करके तुम गई हो जब से दूर, तेरी यादों की क़बा है ज़िन्दगी ।
मैं चराग़ो के सफ़र के साथ हूं , बे-रहम दानी हवा है ज़िन्दगी।
बीच सागर में ख़ुशी पाता हूं मैं , साहिले ग़म से जुदा है ज़िन्दगी ।
फ़ांसी फिर मक़्तूल को दे दी गई ,क़ातिलों का फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी।
किसी को तरसाती है ता-ज़िन्दगी,किसी के खातिर ख़ुदा है ज़िन्दगी।
मैं ग़ुलामी हुस्न की क्यूं ना करूं, चाकरी की इक अदा है ज़िन्दगी ।
इक किनारे पे ख़ुशी दूजे पे ग़म ,दो क़दम का फ़ासला है ज़िन्दगी।
मैं हताशा के भंवर में फंस चुका, मेरी सांसों से ख़फ़ा है ज़िन्दगी।
बे-समय भी फ़ूट जाती है कभी ,पानी का इक बुलबुला है ज़िन्दगी।
वादा करके तुम गई हो जब से दूर, तेरी यादों की क़बा है ज़िन्दगी ।
मैं चराग़ो के सफ़र के साथ हूं , बे-रहम दानी हवा है ज़िन्दगी।
Saturday, 10 July 2010
Friday, 9 July 2010
ईमान
जब से दिलों की गलियों में ईमान बिकते हैं,हां तब से राहे-इश्क़ बियाबान लगते हैं।
ग़म से भरी है दास्तां मेरी जवानी की ,बज़ारे-इश्क़ मे सदा अरमान सड़ते हैं।
साहिल के घर का ज़ुल्म बहुत झेला है मैंने,मंझधार में ही सब्र को परवान चढते हैं।
दिल में नशा शराब का चढता नहीं कभी ,बस साक़ी के लिये ही गिरेबान फटते हैं।
हर काम पहले थोड़ा कठिन लगता है मगर,कोशिश करोगे दिल से तो आसान होते हैं।
ग़म के चराग़ों से मेरा रिश्ता पुराना है ,सुख के हवाओं में कहां इंसान बनते हैं ।
लबरेज़ है हवस से ,मुहब्बत का दरिया अब,बस चद वक़्त के लिये तूफ़ान उठते हैं।
सैयाद जब से बुलबुलों को बेच आया शहर ,तब से दरख़्ते-शहर परेशान दिखते हैं।
इस मुल्क की विशेष पहचान है दुनिया में,हिन्दू के मंदिरों मे मुसलमान झुकते हैं।
ग़म से भरी है दास्तां मेरी जवानी की ,बज़ारे-इश्क़ मे सदा अरमान सड़ते हैं।
साहिल के घर का ज़ुल्म बहुत झेला है मैंने,मंझधार में ही सब्र को परवान चढते हैं।
दिल में नशा शराब का चढता नहीं कभी ,बस साक़ी के लिये ही गिरेबान फटते हैं।
हर काम पहले थोड़ा कठिन लगता है मगर,कोशिश करोगे दिल से तो आसान होते हैं।
ग़म के चराग़ों से मेरा रिश्ता पुराना है ,सुख के हवाओं में कहां इंसान बनते हैं ।
लबरेज़ है हवस से ,मुहब्बत का दरिया अब,बस चद वक़्त के लिये तूफ़ान उठते हैं।
सैयाद जब से बुलबुलों को बेच आया शहर ,तब से दरख़्ते-शहर परेशान दिखते हैं।
इस मुल्क की विशेष पहचान है दुनिया में,हिन्दू के मंदिरों मे मुसलमान झुकते हैं।
Thursday, 8 July 2010
सरहदें
क़ाग़ज पे मेरा नाम लिख मिटाते क्यूं हो ,है गर मुहब्बत मुझसे तो छिपाते क्यूं हो।
घर के दहाने इन तवील रातों मे तुम , इक रौश्नी मुझको दिखा बुझाते क्यूं हो।
जब ज़ख़्मों की तसवीर है नदारद दिल में , तो दर्द की महफ़िल अबस सजाते क्यूं हो।
आवारगी तेरा पयाम है दुनिया को , तो दिल ज़माने से कभी लगाते क्यूं हो।
जब ज़िन्दगी क़ुरबान है किसी के खातिर , तो नाम उसका दुनिया को बताते क्यूं हो।
तेरे ग़मों का हिसाब तू ही जाने , लेकर ग़मों का बोझ मुस्कुराते क्यूं हो।
तुम आंसुओं का मोल जानते हो हमदम , तो आंसुओं को बेवजह गिराते क्यूं हो।
ये सरहदें बेबात बांट ली हमने जब ,तुम सरहदों में बार बार आते क्यूं हो।
ख़ुद हौसलों से दूर हो जीवन भर दानी ,तो हौसला मेरा सदा बढाते क्यूं हो।
घर के दहाने इन तवील रातों मे तुम , इक रौश्नी मुझको दिखा बुझाते क्यूं हो।
जब ज़ख़्मों की तसवीर है नदारद दिल में , तो दर्द की महफ़िल अबस सजाते क्यूं हो।
आवारगी तेरा पयाम है दुनिया को , तो दिल ज़माने से कभी लगाते क्यूं हो।
जब ज़िन्दगी क़ुरबान है किसी के खातिर , तो नाम उसका दुनिया को बताते क्यूं हो।
तेरे ग़मों का हिसाब तू ही जाने , लेकर ग़मों का बोझ मुस्कुराते क्यूं हो।
तुम आंसुओं का मोल जानते हो हमदम , तो आंसुओं को बेवजह गिराते क्यूं हो।
ये सरहदें बेबात बांट ली हमने जब ,तुम सरहदों में बार बार आते क्यूं हो।
ख़ुद हौसलों से दूर हो जीवन भर दानी ,तो हौसला मेरा सदा बढाते क्यूं हो।
Wednesday, 7 July 2010
तेरा मेरा रिश्ता
तेरा मेरा ये जो रिश्ता है सनम , बस इसी का नाम दुनिया है सनम।
हमको जब तुमने ख़ुदा माना है तो,क्यूं ख़ुदा से अपने पर्दा है सनम।
इश्क़ की अपनी रिवायत होती है ,लैला मजनूं का ये तुहफ़ा है सनम।
ना करूंगा जग में ज़ाहिर तेरा नाम,सच्चे आशिक़ का ये वादा है सनम।
हम हिफ़ाज़त ग़ैरों से कर लेंगे पर,मुल्क को अपनों से ख़तरा है सनम।
बिकने को तैयार है हर इंसां आज,कोई सस्ता कोई महंगा है सनम।
चांदनी फिर बादलों के साथ है ,चांद का दुख किसने समझा है सनम।
है चराग़ो के लिये मेरी दुआ , आंधियों से कौन डरता है सनम।
दिल समन्दर की अदाओं का मुरीद,बेरहम, साहिल का चेहरा है सनम।
इस जगह चोरी न करना इस जगह,कोई अफ़सर कोई नेता है सनम।
मेरा पुस्तैनी मकां है उस तरफ़ , दिल लकीरों से न डरता है सनम।
हमको जब तुमने ख़ुदा माना है तो,क्यूं ख़ुदा से अपने पर्दा है सनम।
इश्क़ की अपनी रिवायत होती है ,लैला मजनूं का ये तुहफ़ा है सनम।
ना करूंगा जग में ज़ाहिर तेरा नाम,सच्चे आशिक़ का ये वादा है सनम।
हम हिफ़ाज़त ग़ैरों से कर लेंगे पर,मुल्क को अपनों से ख़तरा है सनम।
बिकने को तैयार है हर इंसां आज,कोई सस्ता कोई महंगा है सनम।
चांदनी फिर बादलों के साथ है ,चांद का दुख किसने समझा है सनम।
है चराग़ो के लिये मेरी दुआ , आंधियों से कौन डरता है सनम।
दिल समन्दर की अदाओं का मुरीद,बेरहम, साहिल का चेहरा है सनम।
इस जगह चोरी न करना इस जगह,कोई अफ़सर कोई नेता है सनम।
मेरा पुस्तैनी मकां है उस तरफ़ , दिल लकीरों से न डरता है सनम।
Monday, 5 July 2010
गुलशन
तू मेरे सूर्ख गुलशन को हरा कर दे , ज़मीं से आसमां का फ़ासला कर दे।
हवाओं के सितम से कौन डरता है , मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन की मुहब्बत का सिला दे कुछ,या इस दिल के फ़लक को कुछ बड़ा कर दे।
तसव्वुर में न आने का तू वादा कर , मेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।
पतंगे की जवानी पे रहम खा कुछ , तपिश को अपने मद्धम ज़रा कर दे ।
हराना है मुझे भी अब सिकन्दर को , तू पौरष सी शराफ़त कुछ अता कर दे।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा , मुझे जो भी दे बस जलवा दिखा कर दे ।
तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब , मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।
शहादत पे सियासत हो वतन मे तो , शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को , यहीं तामीर काशी करबला कर दे।
भटकना गलियों में मुझको नहीं आता, दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।
हवाओं के सितम से कौन डरता है , मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन की मुहब्बत का सिला दे कुछ,या इस दिल के फ़लक को कुछ बड़ा कर दे।
तसव्वुर में न आने का तू वादा कर , मेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।
पतंगे की जवानी पे रहम खा कुछ , तपिश को अपने मद्धम ज़रा कर दे ।
हराना है मुझे भी अब सिकन्दर को , तू पौरष सी शराफ़त कुछ अता कर दे।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा , मुझे जो भी दे बस जलवा दिखा कर दे ।
तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब , मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।
शहादत पे सियासत हो वतन मे तो , शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को , यहीं तामीर काशी करबला कर दे।
भटकना गलियों में मुझको नहीं आता, दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।
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