Monday, 5 July 2010

गुलशन

तू मेरे सूर्ख गुलशन को हरा कर दे , ज़मीं से आसमां का फ़ासला कर दे।
हवाओं के सितम से कौन डरता है , मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन की मुहब्बत का सिला दे कुछ,या इस दिल के फ़लक को कुछ बड़ा कर दे।
तसव्वुर में न आने का तू वादा कर , मेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।
पतंगे की जवानी पे रहम खा कुछ , तपिश को अपने मद्धम ज़रा कर दे ।
हराना है मुझे भी अब सिकन्दर को , तू पौरष सी शराफ़त कुछ अता कर दे।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा , मुझे जो भी दे बस जलवा दिखा कर दे ।
तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब , मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।
शहादत पे सियासत हो वतन मे तो , शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को , यहीं तामीर काशी करबला कर दे।
भटकना गलियों में मुझको नहीं आता, दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।

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